नईम अहमद ‘इमरोज़’
सन 1957 में क़ासिम रिज़वी ने एमआईएम MIM (मजलिस-ए- इत्तिहादुल मुस्लिमीन) को जब अब्दुल वहीद उवैसी के हवाले किया था तब मजलिस पुराने हैदराबाद के महज़ एक वार्ड तक सिमित थी। अब्दुल वहीद उवैसी ने पार्टी की ज़िम्मेदारी अपने हाथ में लेने के बाद एमआईएम (MIM) का नवीनीकरण किया, सबसे पहले उन्होने एमआईएम (MIM) का नाम बदल कर एआईएमआईएम AIMIM (आल इण्डिया मजलिस-ए- इत्तिहादुल मुस्लिमीन) किया। उन्होने खास तौर पर पार्टी को संगठित करने के बाद 1975 में पार्टी का प्रमुख सुल्तान सलाहुद्दीन उवैसी को बनाया।
अब्दुल वहीद उवैसी के बेटे और मौजुदा मीम MIM के प्रमुख असदुद्दीन उवैसी के पिता सुल्तान सलाहुद्दीन उवैसी ने पहली बार सन1960 में हैदराबाद के मुंसिपल चुनाव में “मल्लेपल्ली” से एआईएमआईएम (AIMIM) के टिकिट पर जीत हासिल की। सन 1962 में पहली बार वह हैदराबाद के “पत्थर घाटी” विधानसभा क्षेत्र से जीत कर विधानसभा गये, यह आंध्रा प्रदेश के विधान सभा चुनाव में एआईएमआईएम (AIMIM) की पहली जीत थी, उसके बाद वह लगातार चार बार, याक़ुतपुरा,पत्थरघाटी और दो बार चारमीनार से विधायक रहे।
एआईएमआईएम (AIMIM) की स्थिती में बडा बदलाव तब आया जब सलाहुद्दीन ओवैसी ने सन 1984 में हैदराबाद की लोकसभा सीट से चुनाव लडने का फैसला किया और पहली ही बार में 38% वोट शेयर के साथ जीत दर्ज की, उसके बाद से पार्टी का जनाधार लगातार बढता गया और हैदराबाद की लोकसभा सीट से लगातार 6 बार (1984,1989,1991,1996,1998,1999) जीत हासिल की।
2004 के लोकसभा चुनाव में उन्होने खुद चुनाव न लड कर अपने बेटे असदुद्दीन उवैसी को उम्मीदवार बनाया जिसमे असदुद्दीन ओवैसी ने अपने पिता की ही तरह भारी मतो से जीत हासिल की, उसके बाद से लगातार हैदराबाद लोकसभा क्षेत्र से जीत हासिल करते रहे हैं।
2004 में पार्टी की कमान संभालने के बाद असदुद्दीन उवैसी ने मीम का लगातार अपने ग्रह राज्य और देश के अन्य राज्यो में भी विस्तार किया, मौजूदा समय में एआईएमआईएम(AIMIM) का तेलंगाना राज्य में लगातार प्रभाव बड रहा है, जिसके चलते साल 2014 व 2019 के विधानसभा चुनाव में सात सीटो पर जीत हासिल की।
मीम ने 2012 में पहली बार तेलंगाना से बाहर अपनी राजनैतिक पारी की शुरुआत की और महाराष्ट्र के नांदेड में मुंसिपल काउंसिल चुनाव में 13 सीटो पर जीत हासिल की, उसके बाद 2013 में कर्नाटक के लोकल बाडी चुनाव में 6 सीटो पर जीत हासिल की। 2014 के बिहार विधानसभा चुनाव में मीम ने सीमांचल की 15 और आंध्राप्रदेश की 6 लोकसभा सीटों पर चुनाव लडा मगर कामयाबी नही मिली, इसके अलावा मीम ने 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी अपनी क़िस्मत आज़माई, पर सेकुलर वोटो के बटवारे के डर से लोगो ने मीम के उम्मीदवारो को नकार दिया क्योंकि मीडिया और दूसरी पार्टियों ने जनता के बीच मीम की छवी एक वोट कटुआ पार्टी के तौर पर पेश की।
सेकुलर वोटर को यह खतरा लगने लगा कि मीम, सपा और बसपा जैसी तथाकथित सेकुलर पार्टियों के वोट में सेंध लगायेगी जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिलेगा,परन्तु यह अवधारणा यूपी के सिविल वाडी और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में टूटी जब मीम ने यूपी में 2017 के सिविल वाडी चुनाव में 31/78 सीटो पर जीत हासिल की थी। महाराष्ट्र के 2014 विधानसभा चुनाव में मीम के दो विधायको ने औरंगाबाद और मुम्बई के भाईकल्ला क्षेत्र से जीत दर्ज की । इसके बाद से महाराष्ट्र में मीम का प्रभाव लगातार बढ रहा है।
मौजूदा लोकसभा चुनाव 2019 में पहली बार मीम का प्रभाव हैदराबाद और तेलंगाना के बाहर भी नज़र आ रहा है, बिहार कि किशनगंज लोकसभा सीट पर मीम के उम्मीदवार अखतरुल ईमान काफी मज़बूत स्तिथी में नज़र आ रहे हैं इससे पहले भी बिहार विधानसभा चुनाव के वक़्त सीमांचल की कुछ सीटो पर मीम के उम्मीदवार काफी मज़बूत स्थिति में थे लेकिन बीजेपी को रोकने के लिये सीमांचल के लोगो ने आरजेडी और जेडीयु के गठबंधन को तरजीह दी परंतु जिस तरह से बाद में नीतीश कुमार ने पाला बदल लिया और किशनगंज से कांग्रेस के एमपी मौलाना असरारुल हक़ कासमी का यूनिफार्म सिविल कोड,तीन तलाक़ और मोबलिंचिग जैसे मुद्दो पर बरती गयी खामोशी ने सीमांचल ही नही बल्कि देश भर के अल्पसंखयक और पिछ्डे समुदाय को निराश किया जबकि इस दौरान असदुद्दीन उवैसी अकेले ऐसे नेता थे जिन्होने दलित और मुस्लिम मुद्दो को सडक से लेकर संसद तक उठाया और उनकी लडाई लडी। शायद यही वक़्त था जब उवैसी का प्रभाव हैदराबाद तक सीमित न रह कर पूरे मुल्क में फैला, खास तौर पर मुस्लिम समुदाय में उवैसी की छवी क़ौम (जनता) के हमदर्द के तौर पर उभर कर आई। यही सब कारण उवैसी की बढती ख्याति के सूत्र धारक हैं।
महाराष्ट्र की बात की जाये तो उवैसी ने प्रकाश अम्बेडकर की “बहुजन वंचित अघाढी” के साथ मिलकर हालिया चुनाव लडने का फैसला किया है। उवैसी और अम्बेडकर के मुस्लिम-दलित गठजोड ने यूपीए और एनडीए, दोनो के सामने गम्भीर चुनौती खडी कर दी है जिससे पार पाना आसान नही होगा हालांकि उवैसी ने इस गठबंधन में काफी दरयादिली का सुबूत देते हुए 48 सीटो में से केवल एक ही सीट पर चुनाव लडना तय किया है बाक़ी की 47 सीटो पर “बहुजन वंचित अघाढी” के उम्मीदवारो को चुनाव लडा रहे हैं इससे उवैसी की निःस्वार्थ राजनीति का पता चलता है

(नईम अहमद ‘इमरोज़’ ने अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से हिस्ट्री में ग्रेजुएशन किया है और अभी पांडिचेरी यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल रिलेशन के छात्र है, नेशनल और इंटरनेशनल राजनीति पर पैनी नज़र रखते हैं। इस लेख में उनके अपने विचार हैं जदीद न्यूज़ का उनसे सहमत होना जुरुरी नहीं है.)