देखने में यह गांव एक सामान्य गांव की तरह है। इस गांव में करीब 35 मुस्लिम परिवार रहते हैं जिनकी आबादी 200 के आसपास होगी। इन लोगों के लिए गांव में कब्रिस्तान नहीं है, जिसकी वजह से जब किसी की मौत होती है तो उसे मजबूरी में घरों में ही दफनाया जाता है। जिन लोगों के पास खेत है वे खेतों में शव को दफनाते हैं। कुछ परिवार तो ऐसे भी हैं जिनके घरों में कब्र के ठीक बगल में किचन बना हुआ है। घर में कब्रगाह होने की वजह से महिलाओं और बच्चे खौफ के साए में जीने को मजबूर हैं। जाहिर है अगर घर में ही कब्रगाह हो तो गंदगी से बच पाना मुश्किल है। गंदगी की वजह से ज्यादातर बच्चे और महिलाएं बीमार रहते हैं। इतनी परेशानी में होने के बावजूद इन लोगों की तरफ ध्यान देने वाला कोई नहीं है।

हैरानी वाली बात तो ये है कि जांच के दौरान मिला कि सरकारी दस्तावेजों में कब्रिस्तान के लिए जमीन आवंटित है, लेकिन धरातल पर कब्रिस्तान नहीं है। कुछ लोग इस गांव को भूतों वाला गांव बोलते हैं, तो कुछ लोग इसे शापित गांव बोलते हैं। इस गांव में रहने वाले ज्यादातर लोग भयभीत दिखाई देते हैं। पीड़ित परिवारों का कहना है कि वे तो ऊपर वाले से दुआ करते हैं कि घर में किसी का इंतकाल ना हो। क्योंकि, किसी के मर जाने के बाद उसे कहां दफनाएंगे यह सबसे बड़ी समस्या है। 35 मुस्लिम परिवारों के सभी घरों के सभी कमरे में कब्रगाह बना हुआ है।

प्रशासनिक अधिकारी सुनने को तैयार नहीं
प्रशासनिक अधिकारी भी मानते हैं कि कागजों में जहां आज तालाब बना हुआ है वह जमीन कब्रिस्तान की है। अगर तालाब वाली जमीन पर कब्रिस्तान बनाया जाता है तो तालाब को भरने में बहुत ज्यादा खर्च आएगा। इससे बेहतर है कि कम खर्च में दूसरी जगह पर कब्रिस्तान बना दिया जाए। प्रशासनिक अधिकारी लंबे समये से दूसरी जगह कब्रिस्तान बनाने की बात कर रहे हैं, लेकिन आज तक कुछ नहीं किया गया है। पीड़ित लोग कई बार इसको लेकर प्रशासन से गुहार लगा चुके हैं, प्रदर्शन कर चुके हैं, लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है।

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