सैफनी l( रामपुर) कहते हैं दुनिया मे भगवान है अल्लाह है, लेकिन किसी ने देखा नही है। बस एक ये ही सच है जिसको दुनिया के लोग मानते हैं। वरना कोई और सच को सच जानते हुए भी नही मानते। किसी ने कहा है कि किसी की जीवन समाप्त करना बहुत आसान है लेकिन जीवन देना नामुमकिन। लोग दुनिया में डॉ0 को भगवान मान लेते हैं।माने भी क्यों न एक डॉ0 ही तो होता है जब हम या हमारा कोई प्रिय किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हो जाते हैं तो अल्लाह/ईश्वर से दुआ करने के साथ साथ डॉ0 से अपनी आसाध्य बीमारी का इलाज करवाते हैं,और अल्लाह/ईश्वर की महिमा से आसाध्य रोग कट जाता है।और हम स्वस्थ हो जाते हैं। परंतु कभी कभी ऐसी विकट परिस्थिति आ जाती है कि डॉ0 भी असहाय हो जाते हैं।

जब किसी रोगी की आर्थिक स्थिति मजबूत न हो,और उसको तत्काल रक्त की आवश्यकता हो, लेकिन रक्त नही मिल पाए तो उस वक़्त गरीब रोगी ही नही बल्कि धनी व्यक्ति भी अपने आपको बेबस महसूस करता है।

और न जाने कितने रोगी रक्त के अभाव में दम तोड़ देते हैं।जब ये सब कस्बा सैफनी निवासी नवयुवक हकीम बादशाह खान ने देखा तो महसूस किया कि ये मानव शरीर ही मानव के काम न आ सका तो इस विशालकाय शरीर का क्या लाभ।

ये सोचकर कि हमारे रक्त से किसी को जीवन दान मिलता है तो क्या बुराई है। रक्त की कमी से कोई अनाथ न हो, कोई वेवा न हो, कोई बे औलाद न रह जाये। ये सोचकर हकीम ने अपने बहुत ही कम दोस्तो को साथ लेकर “ब्लड डोनेट फ़ॉर ह्यूमैनिटी” नामक रक्त दाता समूह बनाया जिससे प्रतिदिन एक या एक से अधिक गम्भीर व आसाध्य रोगियों को निःशुल्क रक्त दान किया जाता है।

ग्रुप में सभी प्रकार के रक्त समूहों के सदस्य जुड़े हैं जो दिन ब दिन बढ़ते जा रहे हैं। सभी सदस्य बिना कोई पैसा या वाहन का खर्च लिए संबंधित अस्पताल पहुँच कर अपने खर्चे पर रक्तदान करता है। और समस्त संगठन रोगी में स्वस्थ होने की कामना करता है।
इस संगठन के सदस्यों के लिए कोई जात-पात नही, कोई धर्म नही। सिर्फ मानवता ही सर्वप्रथम है। मानव धर्म ही सर्वोपरि है। इनके लिए क्या हिन्दू,क्या सिक्ख, क्या ईसाई, क्या मुसलमान, क्या बच्चा ,क्या बूढ़ा और क्या जवान सब हैं एक समान।

कस्बे के निकटवर्ती गाँव छितौनी निवासी एक महिला, नाजमा जो कि एक गंभीर रोग से ग्रस्त थी। उसको तत्काल खून की आवश्यकता थी, युवती के समस्त परिजनों ने अपना -अपना रक्त समूह परीक्षण कराया परन्तु किसी भी सदस्य का रोगी के रक्त समूह से मिलान न हो सका । जिस पर महिला के परिजनों ने बादशाह ख़ान से संपर्क किया।

जिस पर बादशाह ख़ान ने सैफनी निवासी ग्रुप के युवा सदस्य रवि कुमार श्रीवास्तव को अवगत कराया क्योंकि रवि कुमार का और रोगी महिला का रक्त समूह समान था। रवि कुमार को जैसे ही सूचना मिली तो तुरंत अपने सारे कामों को छोड़कर मुरादाबाद स्थित लाइफ लाइन होस्पिटल जहां वह महिला एडमिट थी, पहुँच कर अपना रक्त देकर मुस्लिम महिला की जान बचाई।

नाजमा के परिजनों ने अपने मसीह की ढेर सारी दुआयें दीं। कुदरत का करिश्मा ही कहिये कि एक बाप की संतान होते हुए भी,खून एक जैसा नहीं और धर्म अलग अलग होते हुए भी एक जैसा खून। ये इंसान की बिडम्बना ही तो है ,जो धर्म के मकड़जाल में फसकर बंटा पड़ा है,वरना कुदरत ने तो नहीं बांटा उसने तो सब इंसान ही बनाये। रवि हिन्दू और नाजमा मुस्लिम फिर एक ही खून,तुम नफ़रतें करो हम मुहब्बत, ये ही कहना है रवि कुमार का बादशाह ख़ान की पूरी टीम अन्य लोगों को भी रक्त दान के लिए प्रेरित करते हैं।

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