लखनऊ: अभी समाजवादी पार्टी में इस बात को लेकर मंथन चल ही रहा है कि बसपा से गठबंधन पार्टी के लिए कितना फायदेमंद या नुकसान दायक रहा, उससे पहले कि समाजवादी पार्टी कोई निष्कर्ष निकाल पाती बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने अपने चिर परिचित अंदाज में बैठक कर प्रतिद्वंद्वी-सहयोगी अखिलेश यादव के साथ गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया उन्होंने टिप्पणी करते हुए कहा,कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव “अपनी पत्नी डिंपल यादव की कन्नौज से एमपी सीट भी नही बचा सके”।

मायावती मोका परस्त राजनीति में माहिर समझी जाती हैं इससे पहले भी वह कई बार भाजपा के समर्थन से यू पी में सरकार बना चुकी हैं और मोका देख दलितों से भाजपा को वोट देने की अपील भी कर चुकी हैं, इस चुनाव में अखिलेश यादव से मायावती ने मनमानी सीटें ली और जीतने में भी कामयाब हो गई नतीजा समाजवादी उम्मीदवरों को हार के रूप में देखने को मिला  गठबंधन में सब से बड़ा नुकसान अगर किसी को हुआ है तो वह समाजवादी पार्टी है जिसका अंदेशा सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव पहले ही ज़ाहिर कर चुके थे, माया को सपा वोट बैंक से मुस्लिम समुदाय का वोट तो मिला जिसकी वजह से 2019 के चुनाव में दूसरे स्थान पर रहने वाली बसपा ने जीत हासिल की और शून्य से 11 सीटों पर पहुंच गई। मगर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों को माया दलित वोट न दिला सकीं बल्कि बहुजन समाज पार्टी का उम्मीदवार ना होने के कारण वोट भाजपा को चला गया कयास यह भी लगाया जा रहा था कि अगर भाजपा को बहुमत से कम सीटें जीतने पर समर्थन की जरूरत पड़ती तो मायावती गठबंधन को लात मार कर भाजपा को समर्थन दे सत्ता सुख लेने से बांचित नहीं रह सकती थी मतलब यह कि गठबंधन करते समय मायावती के दोनों हाथों में लड्डू थे मगर जनता ने भाजपा को प्रचंड बहुमत दे कर ऎसे मोका परस्त राजनेताओं को उनकी ओकात दिखा दी

सपा से मोह भंग के चलते यादवों ने दिया भाजपा को वोट 

दूसरी ओर सपा से यादवों का मोह भंग हो गया है दो बार की सांसद डिंपल यादव उत्तर प्रदेश में अपनी कन्नौज सीट भाजपा से हार गईं। यह एक बहुत बडी हार थी, यह देखते हुए कि निर्वाचन क्षेत्र में लगभग 3.5 लाख यादव वोट हैं, एक सीट सिर्फ यादवो के माध्यम ही से जीतने के लिए काफी है। चुनाव परिणाम ने बता दिया कि यादव समुदाय ने डिंपल यादव को वोट देने के बजाय भाजपा का समर्थन किया।

कन्नौज की हार समाजवादी पार्टी के लिए बहुत बड़ा झटका है। समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ने इसे 1967 में जीता था। अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव ने 1999 में चुनाव लड़ा और 2000 में अखिलेश यादव को चुनाव मैदान में उतारा। अखिलेश यादव ने 2012 तक सीट संभाली, जब वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री चुने गए। इसके बाद हुए उपचुनावों में डिम्पल यादव निर्विरोध एमपी बन कर सांसद पहुंची।

मायावती ने पार्टी की बैठक में मूल्यांकन करते हुए कहा,”हमारे वोट डिंपल को हस्तांतरित हो गए, लेकिन यादव वोट नहीं मिले”।

उन्होंने कहा कि गठबंधन ” बेकार” था और कहा: “यादव वोट हमारे लिए स्थानांतरित नहीं किए गए थे, लेकिन हमारे वोट उनके पास गए। समाजवादी पार्टी उम्मीदवार केवल वहीं जीता, जहां मुसलमानों ने उनके लिए भारी मतदान किया।

माया लड़ेंगी अकेले उपचुनाव 

मायावती ने उपचुनाव में 11 विधानसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है, जहां उनके उम्मीदवार संसद के लिए चुने गए हैं।
सूत्रों ने बताया कि यह नीति में बदलाव है कि बीएसपी कभी भी उपचुनाव नहीं लड़ती है।

उन्होने कहा कि बसपा-सपा का गठबन्धन मोटे तौर पर दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के बीच था। समाजवादी प्रमुख अखिलेश यादव प्रधानमंत्री के लिए मायावती को आगे करेंगे और बदले में उन्हें राज्य की सत्ता में लौटने में बड़ी मदद मिलती।

मायावती-अखिलेश गठबंधन एक प्रतिद्वंद्वी से-सहयोगी में बदला और 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश में मुश्किल से दर्जन से अधिक सीटों के साथ समाप्त हुआ।

सूत्रों ने बताया, “अगर मायावती गठबंधन से बाहर नहीं निकलती हैं, तो उन्हें विधानसभा उपचुनाव और 2022 में राज्य चुनाव में अखिलेश यादव की मदद करनी पडती।”

फिलहाल, मायावती के लिए चुनाव में सपा से गठबंधन संजीवनी साबित हुआ और अब उनके लिए अखिलेश यादव का बोझ बर्दाश्त से कहीं ज्यादा है। यहां तक ​​कि समाजवादी पार्टी के नेताओं का कहना है कि अब यादव वोट भाजपा को शिफ्ट हो रहे हैं क्योंकि “जाति की राजनीति का युग खत्म हो गया है” और समुदाय विकास चाहता है।

मुस्लिम समाज को सपा के साथ बने रहने की समीक्षा करेने की ज़रूरत

अब समय आ गया है कि मुस्लिम समाज को सपा बसपा के वोट बैंक बने रहने की समीक्षा करने की ज़रूरत है मुस्लिम समुदाय अगर हटा दिया जाए तो सपा के पास अपना कोई वोट बैंक बाकी नहीं रह गया है। यादव वोट पहले ही भाजपा के पाले में जा चुका है जिसका उदाहरण कन्नौज की सीट पर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव की शर्मनाक हार है उत्तर प्रदेश में मुस्लिम समुदाय की दयानीय स्थिति के लिए सपा और बसपा जिम्मेदार हैं सच्चर कमेटी व रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक मुस्लिम समाज की स्थिति दलितों से भी ज्यादा बद्तर है दोनों पार्टियों का चुनावी मुद्दा सिर्फ़ भाजपा को हराने तक ही सीमित रहता है दोनों ही पार्टियों ने मुस्लिम समुदाय को सिर्फ भाजपा का डर दिखा कर अपने पाले में लाने की कोशिश की और किसी हद तक दोनों ही पार्टी इस कवायद में कामयाब रही और मुसलमानों को वोट बैंक से ज़्यादा कुछ और नहीं समझा जिसका जिक्र प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी अपने भाषण में भी कर चुके हैं

यावती मुस्लिम समुदाय के लोगों को अपने पाले में लाने की कोशिश करेंगी

उधर समाजवादी पार्टी ने मायावती की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वह आधिकारिक बयान का इंतजार कर रहे हैं।

सपा विधायक हरिओम यादव ने कहा कि  गठबंधन से केवल मायावती को फायदा हुआ, समाजवादी पार्टी को भारी नुकसान हुआ। अगर गठबंधन नहीं होता, तो मायावती 0 पर होतीं और सपा 25 सीटें जीतती। यादव समुदाय ने उन्हें वोट दिया, लेकिन बेहेन जी का वोट शेयर भाजपा में चला गया।

एसपी के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा, “गठबंधन के संबंध में बीएसपी का आधिकारिक रुख किसी के पास नहीं है। हम आधिकारिक बयान का इंतजार कर रहे हैं।”

कुल मिलाकर इस बार महा गठबंधन बनाकर भी कोई पार्टी भाजपा को सत्ता में आने से नहीं रोक पाई जिससे साफ हो जाता है कि जनता अब जातिवाद परिवारवाद से ऊब चुकी है और अब सिर्फ विकास चाहती है जिसके लिए अब सभी राजनीतिक दलों को अपने दलों के चुनावी एजेंडे को बदलने ज़रूरत है।

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