रिज़वान अली के कलम से
भारत सरकार ने 2015 में इंटरनेशनल योगा डे मानाने का फैसला किया और पुरे देश बल्कि पूरी दुनिया में इसका आयोजन करके खूब वाह वाही भी लूटी| हमारी भारतीय मीडिया ने भी कभी मोदी सरकार को नाराज़ नही होने दिया और देश के सारे असली मुद्दों से हटकर तमाम योगा आयोजनों में हर आसन को पूरी ज़िम्मेदारी के साथ लाइव प्रसारण दिखाया. भले ही मोदी जी को भारत के आत्महत्या करते हज़ारों किसान और बेरोज़गारी की मार झेलते लाखों युवाओं के मुद्दों की बात न करे मगर योगा करते लोगो के आस पास उन्होंने अपने कमरे को पुरे 360 डिग्री घुमा कर दिखाया, संसद में बेठे राहुल गाँधी के मोबाइल पर तो हमारी मीडिया ने खूब डिबेट कराई मगर मजाल है जो सत्ता में बेठे लोगो से पूछा हो के बिहार में मासूम बच्चों की मौत का ज़िम्मेदार कौन?
वैसे मोदी जी इस बार रांची में योगा डे मनाने पहुंचे जो कि बिहार के मुजफ्फरपुर से मात्र 300 किमी के फासले पर है जहाँ लगभग 200 बच्चों ने सत्ता की लापरवाही की वजह से अपनी जान गंवा दी और अभी तक ये सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. मगर मोदी जी का अभी तक मौनासन नही टूटा है. वैसे इतनी जानों के चले जाने से भारत जैसे महान देश में सरकार के कान पर जूं तक नही रेंगती है, अगर ऐसा दिल दहलाने वाला हादसा यूरोप के किसी देश में हो जाता तो सरकारें हिल जाती और ज़िम्मेदार लोग अपने पद से त्यागपत्र दे चुके होते लेकिन हमारे यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं होता है. “सत्ता इंसानों की लाशों पर चढ़ कर मिलती ” ये मुहावरा शायद हमारे लिए भी बना था.
योगा का ख़ास मकसद लोगो को सेहतमंद बनाना एंव सेहत के तयीं जागरूकता फैलाना है, इसके लिए सरकार सिर्फ एक दिन (22जुन योग डे) में 22-34 करोड़ रूपये खर्च करती रही है, देश की विडम्मना तो देखो के कुछ करोड़ लोगो को योगा कराने के लिए 22-34 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं. मगर योगा को अभी पुरे देश ने मुकम्मल तौर पर क़ुबूल भी नही किया है इसकी कई वजह भी रही हैं , कभी धार्मिक अपत्तियाँ तो तभी लोगों पर जबरदस्ती थोपना. योगा अकसर सरकारी स्कूलों,अस्पतालों सरकारी संस्थायो एंव कुछ प्राइवेट संस्थानों में ही मनाया जाता है और इस एक दिन में करोड़ो रुपए खर्च करने के बाद लोग इसे भूल जाते हैं.
सिर्फ एक दिन(प्रति वर्ष 21 जून को) में देश का 22-34 करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी योगा गाँव तक नही पहुंचा है या फिर ग्रामीण इन आसनों से ज़्यादा मेहनत अपने खेतो में रोज़ करते ही हैं इस वजह से उन पर इसका कोई ख़ास असर नही होता.
2017 में यूपी के सीएम योगी अदित्यानाथ के संसदीय क्षेत्र और हाल ही में बिहार के मुजफ्फरपुर में सेकड़ों बच्चों ने डाक्टरों एंव, प्रशासन की लापरवाही की वजह से अपनी जान से हाथ धो कर कितनी गरीब माओं की गोद सूनी करदी! इल्जाम तो अस्पताल प्रशासन को दिया जाता रहा है (डाक्टर कफील को गोरखपुर वाले मामले में जेल हुई थी और मुज़फ्फ़रपुर में एक महीला टीवी पत्रकार अस्पताल में जाकर डाक्टरों के मुह में माइक डाल डाल कर पूछ रही थीं कि कितने बच्चे और मरेंगे). मगर इसकी असल ज़िम्मेदार तो सरकारें होती हैं जो डाक्टरों की बातों को अनसुनी कर अवाम की ज़िन्दगी का मजाक उडाती हैं, और मंत्री सिर्फ आधे घंटे के लिए आकर सहानुभूती दिखा कर चले जाते हैं लेकिन अस्पतालों और मरीजों की हालत वैसी ही रहती है.

काश!जितना पैसा सेहत के नाम पर शहरों और बड़े-बड़े लोगो को जमा करके योगा डे मनाने के लिए एक दिन में खर्च किया जाता है अगर वो पैसा सही जगह गांव में अस्पताल बनाने और सेहत एंव मौसमी बीमारियों के प्रति जागरूकता फैलाने में किया जाता तो सैकड़ों गरीब माओं की गोद उजड़ने से बचाई जा सकती थी.
भारत सरकार मेडिकल पर पूरी जीडीपी का 2.5% भी खर्च नही करती है जिसकी मांग लम्बे समय से चली आ रही है. इंडिया टुडे के अनुसार चुनाव से तीन महीने पहले जनवरी 2019 में तत्कालीन वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने स्वास्थ के लिए 61,398 करोड़ (जिसमे 6400 करोड़ बीमा के नाम पर प्राइवेट संस्थाओं को दिया गया) का बजट पेश किया जबकी प्रति वर्ष एवरेज 22-32 करोड़ रुपया एक दिन के योगा पर खर्च किया जाता है, इससे पता चलता है सरकार जनता के भले के लिए नहीं बल्की सिर्फ नाम के लिए काम करना चाहती है वर्ना प्रधान मंत्री मोदी का हेलिकोप्टर मुज़फ्फर नगर को छोड़ कर रांची नही पहुँचता और इसी त्रासदी पर खामोश नही रहते जबकि उन्हें शेखर धवन की चोट पर कराहना तो याद रहा मगर 200 बच्चों की मौत पर जा नहीं सके! शायद गरीबों के गम में शामिल होना उन्हें नहीं भाता.
यह लेखक के अपने विचार हैं जदीद न्यूज़ का इससे सहमत होना जरुरी नहीं है.