कन्नगी त्रिपाठी
शहीद भगत सिंह के कृतित्व व व्यक्तित्व को समझने के लिए उनके जीवन के विभिन्न पक्षों को गहराई से समझने की ज़रूरत है। बहुत कम समय में वह एक परिपक्व क्रांतिकारी विचारधारा के प्रतिनिधि के रूप में प्रतिष्ठित एवं स्थापित हो गये। एक तरफ वह विषयों पर अध्ययनशील रहे तो पूरी तरह उसमे डूब जाते थाे उनकी अध्ययनशीलता,तर्कशीलता उनके निकटतम क्रांतिकारी कामरेड शिव वर्मा टिप्पणी करते हैं -“कि भगत सिंह किताब पढ़ता नही पीता था” और उनके अध्ययनशीलता के प्रति रुचि का प्रमाण यह है, कि फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद भी, फांसी के तख्ते पर चढ़ाए जाने के कुछ क्षणों पूर्व तक बहुत सारी पुस्तकें पढ़ लेना चाहते थे।अन्तिम समय मे,जबकि सर पर मौत मन्डरा रही थी भगत सिंह ने जो पुस्तकें पढी , उनमे सबसे प्रमुख ” राज्य और क्रांति” और ” लेनिन की जीवनी” हैं। जीवन के अन्तिम समय मे उन्होंने जो किताब पढी वह विश्व के महानतम क्रांतिकारी व्लादिमीर लेनिन जिन्होंने जारशाही का अन्त करके समाजवादी क्रांति जिसको बोल्शेविक क्रांति के रूप में जाना जाता है, पूरी सफलता से उसको अन्जाम दिया, और मार्क्सवाद के सिद्धांत को व्यवहारिक जामा देते हुए वैज्ञानिक समाज वाद की अवधारणा के अनुसार सशक्त सोवियत यूनियन का गठन किया। शहीद भगत सिंह व्लादिमीर लेनिन से अत्यधिक प्रभावित हुए, जब जेल अधिकारी उनको फांसी के लिए बुलाने आए, तब वह लेनिन की जीवनी पढ रहे थे,और उन्होंने कहा “कुछ समय के लिए ठहर जाइये,अभी एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मुलाकात कर रहा है.” उसके बाद मुस्कुराते हुए खडे़ हुए और कहा चलो और वे फांसी के तख्ते की ओर दो और साथी सुखदेव व हरिराम राजगुरु भी थे, चल दिए। इस शहीद सिद्धांतिक, व्यवहारिक रूप से समर्पण, प्रतिबद्धता व बलिदान की कोई मिसाल नहीं मिलती |
शहीद भगत सिंह मे ज्ञान के प्रति असीम अनुराग था,और ज्ञान को हासिल करके मानवीय जीवन के सम्पूर्ण पहलू पर गहराई से जानकारी प्राप्त की ,मानवीय जीवन को सवारने के लिए अनवरत संघर्ष किया।उनके द्वारा लिखे गये लेखों से प्रमाणित होता है कि उनमें किसी भी विषय को समझने की अप्रतिम प्रतिभा थी।
वह मानवजीवन से प्यार करते थे।मानवीय मूल्यों, मानवीय गरिमा,मानवीय संवेदना एवं मानवीय जीवन को सबसे ऊंचा दर्जा देते थे।बेशक हर दृष्टिकोण वह एक सच्चे क्रांतिकारी के रूप में स्थापित व प्रतिष्ठित हो गए और अपनी इस स्थिति के बारे में उन्हें सम्पूर्ण रूप से ज्ञान था ,इसलिए उन्होंने उनको मृत्यु दण्ड से बचाने के लिए किए जाने वाले सभी प्रयासों को अस्वीकार कर दिया और कहा कि ” आज मैं पवित्र क्रांति का प्रतीक बन गया हूँ, जीवित रहने की स्थिति मेंं सम्भवतः इस पवित्र छवि का संरक्षण न कर सकूं। इन मूल्यों के संरक्षण के लिए उन्होंने फांसी के फन्दे काे चुना जिससे असंख्य नवयुवकों में शहादत जज़्बा पैदा होगा। उन्होंने कहा मैंने इन्क़लाब जि़न्दाबाद का जो नारा असेम्बली के अन्दर बुलंद किया वह मेरी जेल की कोठरी से लेकर समूची दुनिया में सशक्त रूप से करोड़ों गुना शक्ति के साथ बुलंद किया जा रहा है, यह मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। वह क्रांतिकारी गतिविधियों को जारी रखने के साथ निरन्तर पढ़न पाढन में लगे रहे ,उनके द्वारा लिखे गए लेखों में “बम का दर्शन” “हां मैं नास्तिक हूँ” , “आर्म्स एक्ट खत्म कराओ” जैसे तमाम लेख लिखे ।यहां संक्षेप में शहीद भगत सिंह , सुखदेव, राजगुरु के अतिरिक्त बहुत सारे क्रांतिकारियों के कृतित्व व व्यक्तित्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।जिसमें शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी जिन्होंने प्रमुख रूप से पूरे देश में बिखरे हुए क्रांतिकारियों को एक दूसरे के सम्पर्क में लाने का व समन्वयक की भूमिका अदा की।बंगाल के महान क्रांतिकारी सचीन्द्र नाथ सान्याल को भी समझना होगा, जिनके संगठन का महान क्रांतिकारी नौजवान यतीन्द्र नाथ दास ने तिरेसठ दिन का अनशन करके विश्व रिकॉर्ड का़यम किया।
बहुधा आज भी महिलाओं को अनदेखा कर दिया जाता है, इस.क्रांतिकारी संगठन में दो महिलाओं की प्रमुख महत्वपूर्ण भूमिका रही है एक दुर्गा भाभी दूसरी सुशीला दीदी ।
इस शहादत दिवस पर दुनिया भर के क्रांतिकारियो को उनके बलिदान को नमन करते हुए रक्त अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करना लाजिमी है। क्रांतिकारियों के सन्गठन की एक त्रासदी यह रही कि सन 1931 के करीब लगभग तमाम क्रांतिकारी या तो गिरफ्तार किए गए या तो मारे गए, जिससे देश की आजादी ही नहीं एक शोषण मुक्त समाज की स्थापना का अभियान अपना सफर पूरा नहीं कर सका।
भारत को मिली आजादी के बारे मे इन सभी का स्पष्ट रूप से मानना था कि यह आजादी, आजादी ही नहीं है , बल्कि देशी विदेशी शोषणकारी ताकतों का आपसी समझौते के तहत मात्र सत्ता हस्तांतरण है। इस बारे में शहीद भगत सिंह ने अदालत के कटघरे से कहा था ” हमारी लडाई एक व्यक्ति के द्वारा दूसरे व्यक्ति के शोषण के विरुद्ध, एक देश के द्वारा दूसरे देश के शोषण के विरुद्ध है, हम एक शोषण मुक्त समाज की स्थापना की लडाई लड रहे हैं, यह लडाई न मेरे जन्म से आरम्भ हुई है न मेरी मृत्यु से समाप्त होगी।” यह बात उन्होंने 1947 से पहले ही बोल दी थी। इसी बात को मशहूर इन्कलाबी शायर फैज अहमद फैज ने इस आजादी को नकारते हुए अपनी आवाज़ बुलंद की और एक शेर कहा-
“यह दाग-दाग उजाला
यह सब्गजीदा सहर
वो इन्तजार था जिसका
यह वो सहर नहीं है “
(यह धुन्ध, कोहरे से भरी सुबह है, हम ऐसी सुबह के लिए नहीं लडे, हम एक गुलाबी सुबह के लिए लडे जिसमें लाल सूरज का एहतराम करना था)
“न हम जीते हैं, न हम हारे है
जंग जारी है , फतेह हमारी है.”
इन्कलाब जिन्दाबाद, साम्राज्यवाद हो बर्बाद, क्रांति चिरंजीवी हो. Long live Revolution….
