किछौछा/अंबेडकर नगर महबूब ए यजदानी हुज़ूर सैय्यदना मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी रदियल्लाहु तआला अन्हु की विलादत सन 708 हिजरी में हुई। आपके वालिद हुज़ूर सय्यदना सुल्तान मोहम्मद इब्राहीम नूर बख्शी रहमतुल्लाहि अलैहि अपने ज़माने के आरिफ़ कामिल वासिल इलल्लाह बुज़ुर्ग थे जबकि आपकी वालिदा मखदूमा हज़रत बीबी सय्यदना खदीजा रहमतुल्लाहि अलैहा भी राबिया ए अस्र थीं जो कि इमाम अल सूफिया हजरत ख्वाजा सैयद अहमद यस्वी (रदियल्लाहु तआला अन्हु के बा वकार खानदान से थीं।

अल्लाह तआला ने नेक और सालेह वालिदैन की बरकात ए सोहबत से हुज़ूर मखदूम पाक (रजि.) को फितरतन सूफीवाद और तरीकत की दुनिया का लुअ लुअ और मरजान बना दिया था ।
यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि खानवाद ए अशरफिया की धार्मिक, सामाजिक, शैक्षणिक और आध्यात्मिक सेवाएँ लगभग छह शताब्दियों से चली आ रही हैं और इंशा अल्लाह यह आध्यात्मिक सिलसिला क़यामत तक जारी रहेगा।
सरकार मखदूम पाक की शान ए तकवा आपकी जमीनी, भौगोलिक, धार्मिक, इस्लामी, आध्यात्मिक, इल्मी और क़लमी खिदमात रोज़ ए अव्वल से आज तक क़िरतास गीती के सीने पर नक़्श हैं ।
आपकी धार्मिक और सामाजिक खिदमात पर आपकी बारगाह में खिराज ए अक़ीदत पेश करने वालों में साहिबान ए क़िरतास और कलम उलमा भी हैं और मुल्कों के रईस और सुल्तान भी शामिल हैं, और यह नियाज़ मंदी और शुक्र गुज़ारी का सिलसिला आज भी कायम है।
सरकार हुज़ूर मखदूम पाक (रजि.) जहां एक तरफ सूफीवाद के इमाम थे तो वहीं कुरान के एक महान व्याख्याता भी थे। आप एक बुलंद पाया मुरशिद कामिल थे तो इल्मे रिवायात और अस्मा ए रिजाल पर पकड़ रखने वाले मोहद्दिस भी थे, आपकी फ़िकही बसीरत का आलम यह था कि आप में अपने दौर के काज़ी अबू यूसुफ इमाम ज़फ़र की झलक नज़र आती थी । अल्लाह तआला ने आपको जहां इल्म ए हेमियाह, कीमिया और सीमिया अता फरमाया था वहीं आप इल्म ए मंतिक और फलसफा के फाराबी व बू सीना, फन ए नहव के अबुल अस्वद और इब्ने हाजिब, फन ए शायरी के रूमी व शीराज़ी, इल्म ए तसव्वुफ़ के ग़ज़ाली थे।

आपके मुरव्वजा उलूम व फुनून पर उबूर कामिल को देख कर अक्ले इंसानी हैरत में पड़ जाती है कि यह वही मखदूम अशरफ हैं जिनको आज तक हम सिर्फ एक करामत वाले वली और समाअ व रक्स वाला सिर्फ सूफी समझते रहे ।
वर्ष 2023 में सरकार मखदूम पाक के उर्स मुबारक के अवसर पर अहले सुन्नत से जुड़े अक़ीदतमंदों की अतिरिक्त जानकारी के लिए आपकी संक्षिप्त जीवनी बयान की जाती है।

गौसुल आलम मेहबूब ए यज़दानी तारिकुस्सल्तनत हज़रत सैय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी रहमतुल्लाहि अलैहि का जन्म सन 708 हिजरी में सिमनान के सूबा खुरासान की राजधानी में बुजुर्ग कामिल और सिमनान के बादशाह सुल्तान सय्यद इब्राहीम के घर में हुआ ।
प्रारंभिक शिक्षा
सरकार मखदूम सिमनानी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता सुल्तान इब्राहिम से प्राप्त की, सात साल की उम्र में उन्होंने सात किरअतों के साथ पूरा कुरआन पाक हिफज किया और चौदह साल की उम्र में तमाम उलूम में महारत हासिल की।
सिमनान की बादशाहत
17 वर्ष की आयु में सिमनान के बादशाह बनाए गए । उनके शासनकाल में सिमनान न्याय, ज्ञान और कला का केंद्र बन गया। उनका मन साम्राज्य के कार्यों से विरक्त होने लगा और उनका स्वभाव ज्ञान तथा आचरण की ओर झुकने लगा। शेख रुकनुद्दीन अलाउद्दीन सिमनानी, वफ़ात 736 हिजरी, शेख अब्दुल रज़्ज़ाक़ काशी, इमाम अब्दुल्ला याफ़ई, सैयद अली हमदानी, शैख इमादुद्दीन तबरेज़ी और अन्य महान सूफी संतों और विद्वानों से शरीअत और तरीकत की शिक्षाएँ हासिल कीं ।
भारत में आगमन
25 साल की उम्र में इशारा ए गैबी पर सल्तनत के काम अपने छोटे भाई सैय्यद मोहम्मद आरफ को सौंप कर भारत की तरफ रवाना हुए। भारत के प्रसिद्ध प्राचीन हिंदी और फ़ारसी लेखक मलिक मोहम्मद जायसी के अनुसार, उम्मत ए मोहम्मदिया के सदकैन में दो शख्स तर्के सल्तनत के लिहाज़ से तमाम औलिया पर फ़ज़ीलत रखते हैं, एक तारिके सल्तनत ख्वाजा इब्राहीम बिन अदहम और दूसरे तारिकुस्सल्तनत हज़रत सैय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी ।
हुसूल ए तसव्वुफ़
सरकार मखदूम सिमनानी सिमनान से निकाल कर समरकंद के रास्ते मुल्तान में औच शरीफ पहुंचे। उस समय यह जगह सय्यद जलालुद्दीन बुखारी वफ़ात 780 हिजरी की वजह से रुश्द व हिदायत का मरकज़ थी । मखदूम ए जहाँ की खानकाह में तीन दिन तक मेहमान रहे । मखदूम सिमनानी का बयान है कि मखदूम ए जहां ने आपको अकाबिर मशाइख से हासिल होने वाले तमाम रूहानी फुयूज़ व बरकात और सिलसिला आलिया सोहरवर्दिया की इजाज़त व खिलाफत से नवाज़ दिया, रुखसत होने के वक़्त मखदूम ए जहां ने फरमाया “फ़रज़ंद अशरफ जल्दी करो और दरबार ए शैख अलाउल हक़ में हाज़िर हो जाओ वह तुम्हारा शिद्दत से इंतज़ार कर रहे हैं” सरकार मखदूम पाक दिल्ली से बिहार शरीफ, फिर वहां से बंगाल पहुँचे । बंगाल के मालदा जिले में मक़ाम पंडवा शरीफ़ हज़रत शैख अला उल हक़ रजि अल्लाहु अनहो का मरकज़ ए रुश्द व हिदायत बना हुआ था । शैख अला-उल-हक पंडवी ने मखदूम सिमनानी का शाही तरीके से स्वागत किया। शेख कामिल ने उन्हें चिश्तिया निज़ामिया सिलसिले में मुरीद फरमाया और दूसरे सिलसिलों की इजाज़त व खिलाफत से नवाजा । सरकार मखदूम पाक ने शैख की खिदमत में 12 वर्ष रह कर बहुत मुजाहिदात व रियाज़ात के जरिए मनाज़िल ए सुलूक व मारिफ़त की तकमील फरमाई ।
732 हिजरी में सलूक की तकमील के बाद अपने शैख के हुक्म से मखदूम सिमनानी रुश्द व हिदायत के लिए बंगाल से शीराज़ ए हिन्द जौनपुर और बनारस के रास्ते होते हुए अयोध्या के करीब मक़ाम किछोछा (जो उस वक्त यूपी के ज़िला जौनपुर में था और अब ज़िला अंबेडकर नगर में है) पहुँचे और किछोछा शरीफ में अपनी खानकाह क़ायम की ।
मखदूम सिमनां उर्दू के पहले लेखक
सरकार मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी न केवल अरबी और फारसी भाषा में पारंगत थे बल्कि उर्दू भाषा के पहले लेखक भी माने जाते हैं। चुनांचे जामिया कराची के उर्दू विभाग के पूर्व प्रमुख डॉ. अबुल लैस सिद्दीकी ने अपने शोध में पाया है कि आपका एक रिसाला उर्दू नसर में “अखलाक़ व तसव्वुफ़” के नाम से भी है । प्रोफेसर हामिद हसन कादरी की रिसर्च भी यही है कि उर्दू में सबसे पहली नसरी तसनीफ़ सैयद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी का रिसाला अखलाक व तसव्वुफ़ है जो 758 हिजरी मुताबिक़ 1308 ईस्वी में लिखा गया । यह कलमी नुस्खा एक बुज़ुर्ग मौलाना वजहुद्दीन के इरशादात पर मुशतमिल है और इस के 28 सफ़हात हैं । क़ादरी साहब ने यह भी साबित किया है कि उपरोक्त पत्रिका उर्दू गद्य ही नहीं बल्कि उर्दू भाषा की पहली किताब है। इससे पहले उर्दू गद्य में कोई सिद्ध पुस्तक नहीं है, इसलिए शोधकर्ताओं के शोध से साबित हुआ कि सरकार सैयद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी उर्दू गद्य के पहले अदीब और लेखक हैं।
सरकार मखदूम पाक की तसनीफ़ात (लिखी गई किताबें)
आपने 31 किताबें लिखीं जो समय के साथ लुप्त हो गईं, लेकिन अभी भी 10 पुस्तकें ऐसी हैं जो अच्छी स्थिति में हैं और इस्लाम जगत के विभिन्न विश्वविद्यालयों में संरक्षित हैं। अधिकांश पुस्तकें फ़ारसी में थीं, बाद में आपने उनका अरबी में अनुवाद किया ।
फवाइदुल अकाइद
यह किताब पहले फ़ारसी भाषा में थी और बाद में इसका अरबी में अनुवाद किया गया। आपके ख़लीफ़ा और जानशीन हज़रत सैयद अब्दुल रज्जाक़ नूरूल ऐन फरमाते हैं कि जब आप अरब तशरीफ़ ले गए तो बदुओं ने तसव्वुफ़ के मसाइल जानने की ख्वाहिश की तो आपने फवाइदुल अकाइद का अरबी भाषा में अनुवाद किया ।
आपकी जीवनी और शिक्षाओं के संबंध में आपके मुरीद व खलीफा शैख ए आज़म यमनी अशरफ़ी (रहमतुल्लाहि अलैहि) की किताब लताइफ़ ए अशरफ़ी बहुत महत्वपूर्ण है। यह किताब फ़ारसी में है और इसमें आपने सूफ़ीवाद के सबसे महत्वपूर्ण रहस्यों की व्याख्या की है। तरीकत के तमाम सलासिल के बुज़ुर्गों ने इस से फाइदा हासिल किया है ।
मकतूबात ए अशरफी
बिशारतुल मुरीदीन
अशरफुल बयान
सरकार सैयदना मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी ने 727 हिजरी में कुरआन करीम का बड़ा नुस्खा अपने हाथ से तहरीर फरमाया और उसका फारसी में तर्जुमा भी तहरीर फरमाया ।
वफ़ात
आपकी वफ़ात 28 मुहर्रम 828 हिजरी में हुई
मज़ार शरीफ और उर्स मुबारक
आपका मज़ार किछोछा शरीफ ज़िला अंबेडकर नगर, उत्तर प्रदेश, भारत में स्थित है। आपका उर्स मुहर्रम की 26/27 और 28 तारीख को होता है ।
अशरफ ए मिल्लत हज़रत सय्यद मोहम्मद अशरफ अशरफी जीलानी, खानकाह अशरफिया शैख-ए-आज़म सरकार-ए-कलाँ किछोछा शरीफ (राष्ट्रीय अध्यक्ष ऑल इंडिया उलमा व मशाइख बोर्ड)