रज़ा डिग्री कॉलेज
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“पुरातन भारतीय कलाओं द्वारा महिलाओं का कौशल विकास” शीर्षक पर ऑनलाइन ई-संगोष्ठी का हुआ आयोजन।

नृत्य कला भारतीय पुरातन कलाओं में सबसे महत्वपूर्ण कला है।प्राचीन समय से लेकर आज तक नृत्य कला का बढ़ता ही जा रहा है महत्व।

रामपुर(मूजहिद खान): राजकीय रज़ा स्नातकोत्तर महाविद्यालय में उत्तर प्रदेश शासन के मिशन रोजगार एवं मिशन शक्ति कार्यक्रम के अंतर्गत “पुरातन भारतीय कलाओं द्वारा महिलाओं का कौशल विकास”शीर्षक पर एक ऑनलाइन ई-संगोष्ठी/वेबीनार का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम प्राचार्य डॉ०पी0के0 वार्ष्णेय के मार्गदर्शन एवं निर्देशन में हुआ।प्राचार्य ने बताया कि मिशन शक्ति कार्यक्रम शारदीय नवरात्र से आरम्भ होकर ग्रीष्म नवरात्र तक आयोजित होगा।ऑनलाइन संगोष्ठी शुभारंभ की घोषणा करते हुए डॉ0 विनीता सिंह ने कहा कि,पुरातन भारतीय कलाओं का भारतीय समाज के विकास में अविस्मरणीय योगदान रहा है।भारत की महिलाओं को पुरातन कलाओं के द्वारा कौशल एवं आर्थिक रूप से सशक्त बनाया जा सकता है।नृत्य कला,पाक कला और कड़ाई बुनाई सिलाई जैसी कला को सीखकर अपने को सशक्त बना सकतीं हैं।
मुख्य वक्ता डॉ0 अनिल राय प्रोफ़ेसर,दिल्ली विश्वविद्यालय ने कहा कि प्राचीन भारतीय समाज में कला,संगीत और साहित्य को समान स्थान प्राप्त था।कला साहित्य और संगीत के बिना व्यक्ति पशुतुल्य होता है।64 भारतीय पुरातन कलाओं का जिक्र करते हुए डॉक्टर अनिल राय ने कहा कि नृत्य कला भारतीय पुरातन कलाओं में सबसे महत्वपूर्ण कला है प्राचीन समय से लेकर आज तक नृत्य कला का महत्व बढ़ता ही जा रहा है महाभारत काल में अर्जुन नृत्य कला के रूप में पारंगत थे।वहीं मंदिरों में नृत्यांगनाएं रखी जाती थी।आज भी अनेक महिलाएं भारत की जानी-मानी नृत्यांगनाएं हैं।और समूचे विश्व में प्रसिद्धि प्राप्त कर रही हैं।नाट्यकला भी भारतीय पुरातन कला में दूसरी महत्वपूर्ण कला है जिसमें आधुनिक समय की महिलाओं ने बहुत नाम कमाया है।नाटक क्षेत्र में आज महिलाएं अभिनेत्री,फिल्म निर्देशिका एवं फिल्म निर्माता के रूप में अपने गौरवमयी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं।वास्तु कला के क्षेत्र में भी आभा नारायण लांबा और शीला श्रीप्रकाश ने बहुत प्रसिद्धि की है और दुनिया के 100 बड़े स्थापत्यकारों की सूची में शामिल है।गायन कला के क्षेत्र में लता मंगेशकर,आशा भोंसले,अनुराधा पौडवाल,अलका याग्निक,श्रेया घोषाल,अलीशा चिनॉय,कविता कृष्णमूर्ति और नेहा कक्कड़ इत्यादि भारतीय महिलाओं ने खूब प्रसिद्धि बटोरी है।रितु बेरी और रितु कुमार जैसी भारतीय महिलाएं वस्त्र आभूषण सज्जा कला में पारंगत होकर आर्थिक रूप से सशक्त बन गई हैं,जबकि पाली नंदा,मेघा कोहली और ऋतु डालमिया इत्यादि भारतीय महिला भारत की जानी-मानी पाककला पारंगत शख्सियत हैं। आज ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं इन महिलाओं से प्रेरित होकर अपने आप को सशक्त बना सकती हैं।
विशिष्ठ वक्ता डॉ0वी0 के0 राय ने संगोष्ठी में प्राचीन सिंधु सभ्यता का जिक्र करते हुए बताया कि कला वह है जो किसी को भी आनंदित करें।सैंधव सभ्यता में नृत्य कला का प्रमाण मिलता है।मृदभांड कला महिलाओं को रोजगार का अवसर प्रदान करती थी।सैंधव सभ्यता में मिट्टी के बर्तन बनाने की कला सैंधव सभ्यता महिलाओं की प्रमुख कला थी,जिससे वह अपना जीवकोपार्जन करती थी।आज इस कला को नए तरीके से प्रोत्साहित करके रोजगार सृजन किया जा सकता है।
ऑनलाइन संगोष्ठी का संचालन डॉ0 बेबी तबस्सुम ने किया।गत कार्यक्रम की आख्या का प्रस्तुतीकरण डॉ0 सुमनलता ने किया और सभी सभी अतिथि वक्ताओं एवं प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापन डॉ0 अरुण कुमार ने किया।

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