दिल्ली चुनाव: दो जागी हुई कौमों के बीच जंग।
अजीज बर्नी
ऐसा लगता है दिल्ली विधानसभा का चुनाव सिर्फ दो सीटों पर सिमट कर रह गया है। बाक़ी 68 सीटों पर चुनाव है ही नहीं। ऐसा ही बिहार के चुनाव में हुआ था तब लगता था कि चुनाव बस सीमांचल में ही है महाराष्ट्र में भी यही हुआ था। नतीजा आपके सामने है। अगर वोट अल्लाह के नाम पर मांगा जाएगा तो राम के नाम पर भी।
अगर सेक्युलरिज्म को रिजेक्ट किया जाएगा तो कम्युनलिज्म के नाम पर ही चुनाव होगा यही बीजेपी को सूट करता है इसी लिए वो सेक्यूलर पार्टियों की विरोधी है। हिंदू 2014 के बाद जागा है जब नरेंद्र मोदी की सरकार बनी और मुसलमान 2012 के बाद जागा है जब असदुद्दीन ओवैसी कांग्रेस इत्तेहाद से अलग हुए। फिर चुनाव दो जागी हुई कौमों के बीच होने लगा, नतीजा आपके सामने है।
अब आप कुछ कहेंगे तो कांग्रेस के 70 साला राज की कमियां गिना दी जाएंगी मतलब आप भी मानते हैं कि 2014 के बाद ही अच्छी सरकारें देखने को मिली हैं और अगर हम इसी दिशा में आगे बढ़ते रहें तो मुल्क में चुनाव सिर्फ हिन्दू और मुसलमान के बीच ही रह जाएगा वहीं 1947 का नज़ारा।
अगर वो ठीक था तो आज भी सब ठीक है। बात एक ओवैसी की नहीं योगी आदित्यनाथ भी जहां जाते हैं बटोगे तो कटोगे का नारा लेकर जाते हैं। अजीब बात है आप सरकारों को सेक्यूलर देखना चाहते हैं संविधान सेक्यूलर ही रहे ये दुहाई देते हैं और हर चुनाव को कम्युनल देखना चाहते हैं। ये कैसे मुमकिन है। आप जिसे ठीक समझें वोट दें लेकिन ये ज़हन में रखें कि आप 2 सीटों पर फोकस कर रहे हैं उनके पास 68+2 यानी 70 सीटें हैं इसी सोच के साथ वोट के पोलराइजेशन के लिए,,,,