कर्बला की जंग मे हजरत इमाम हुसेन की शहादत की याद मनाये जाते है मुहरर्म
(डा.जफर सैफी)
रामनगर। मुहर्रम इस्लाम मे विश्वास करने वाले लागो का एक प्रमुख त्यौहार है। मुहर्रम इस्लाम धर्म के इस्लामिक कलैण्डर का पहला महीना होता है जैसे कि अंग्रेजी कलेण्डर मे जनवरी माह पहला माह होता है। इस माह की बहॅुत विशेषता व महत्व है।
सन् 680 मे इसी माह मे कर्बला नामक स्थान मे इस्लाम धर्म के मानने वालो व नही मानने वालो के बीच एक धर्म युद्व हुआ था, जो इस्लाम धर्म के पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब के नवासे हजरत ईमाम हुसैन व यहूदी राजा यजीद पुत्र माविया पुत्र अबुसुफियान पुत्र उमेया के बीच हुआ था। इस धर्म युद्व मे वास्तविक जीत हजरत इमाम हुसैन की हुयी थी मगर बेधर्मी ने धोख से नमाज पढ़ते वक्त हजरत इमाम हुसैन व उनके 72 साथियो को शहीद कर दिया था। जिसमे उनके छः माह के पुत्र हजरत अली असगर भी शामिल थें और तभी से तमाम दुनिया के ना सिर्फ मुसलमान बल्कि दूसरी कौमो के लोग भी इस महीने मे इमाम हुसैन और उनके साथियो की शहादत का गम मनाकर उनको याद करते हैं। आशूरे के दिन यानि 10 मुहर्रम को एक ऐसी घटना हुयी थी जिसका विश्व के इतिहास मे महत्वपूर्ण स्थान है।
इस घटना मे बीमारी के युद्व मे भाग नही ले पाने के कारण हजरत इमाम हुसैन के पुत्र हजरत इमाम जैनुलआबेदीन ही सिर्फ जिन्दा बाकी बचे थे। इराक स्थित कर्बला मे हुयी यह घटना दरअसल सत्य के लिये जान न्योछावर कर देने की जिंदा मिसाल है क्योकि अपने नाना की आज्ञा के पालन मे सत्य की रक्षा करने वाले इमाम हुसैन को इसी दिन शहीद कर दिया गया था। कर्बला की घटना अपने आम मे बड़ी विभत्स और निंदनीय हैं। बुजुर्ग कहते है कि इसे याद करते हुये भी हमे हजरत मुहम्मद का तरीका अपनाना चाहिये। आज आम मुसलमान को दीन की जानकारी नही के बराबर और वह अल्ला के रसूल के तरीको से वाफिक नही हैं। ऐसे मे जरूरत है कि आम मुसलमान हजरत मुहम्मद की बतायी हुयी बातो पर गौर करे व उनके बताये हुये तरीको का पालन करे। आज यजीद का नाम दुनियॉ से खत्म हो गया और उसकी नस्लो का कुछ पता भी नही है मगर दुनियॉ भर मे अरबो ऐसे मुसलमान है जो कि अपनी औलादो का नाम हजरत इमाम हुसैन व उनके साथ शहीद हुये उनके साथियो के नाम पर रखते है।
इमाम हुसैन के बाद जिंदा बचे उनके पुत्र हजरत इमाम जेनुलाबेदीन के जरिये आगे चली उनकी औलादे सादात कहलाती है तथा वो आज भी दुनियॉ भर मे फैली हुयी हैं। मुहरर्म मे बॉस की फनटियो पर रंग-बिरंगे कागज व पन्नी लगाकर बनाये जाने वाले मकबरे के आकार के मंडप हजरत इमाम हुसैन की कब्र के प्रतीक के रूप मे बनाते है तथा शिया लोग उसके आगे बैठकर मातम करते है और मर्सिये पढ़ते है। मुहरर्म माह की 11 वी तारीख को ताजियो को दफन कर दिया जाता है।