संघ अपनी जरूरत केलिए अन्ना हजारे को गांधी बना कर पेश कर सकता है और ओवैसी को जिन्ना।
अजी़ज बर्नी
मैं इस वक्त दिल्ली विधानसभा चुनाव नतीजों से पहले और पोलिंग के बाद लिख रहा हूं ताकि आप लोग ये ना समझें कि मैं चुनाव को मुतासिर करने के लिए लिख रहा हूं।
2011 में अन्ना हजारे की रामलीला मैदान पर नौटंकी आपने देखी और 2012 में ओवैसी ने कांग्रेस से अलग होकर सेक्युलरिज्म के खिलाफ़ मुहिम शुरू की, क्योंकि जब तक भारत सेक्युलर है संविधान सेक्यूलर है भारत हिन्दू राष्ट्र नहीं बन सकता। मुसलमान अंग्रेज़ी हुकूमत के सामने भी सबसे बड़ी रुकावट थे और हिन्दू राष्ट्र के रास्ते में भी।
मैं यहां ये वाज़े कर देना चाहता हूं कि 1947 में भारत का हिंदू या मुसलमान बटवारा नहीं चाहते थे जिन्ना और जिन्ना के प्रभाव में आने वाले मुसलमान ही बटवारा चाहते थे। जिन्ना ने भी वही माहौल बनाया था जो आज ओवैसी बना रहे हैं। हिंदू मुसलमान आज भी एक दूसरे के साथ हैं कुंभ मेले की मिसाल आपके सामने है।
भाजपा का सहयोग ना होता तो अन्ना हजारे का शो कामयाब ना होता इस शो के सभी भागीदार आज आपके सामने हैं। अरविंद केजरीवाल कांग्रेस पार्टी को दिल्ली और पंजाब से बेदखल कर चुके गुजरात में नुक्सान पहुंचाया और आगे भी वो फ़र्ज़ी सेक्यूलर बनकर कांग्रेस को नुकसान पहुनाएंगे। किरण बेदी गवर्नर बनीं, कुमार विश्वास का असली चेहरा आज आपके सामने है। भाजपा नहीं चाहती तो ओवेशी का भी कोई शो कामयाब नहीं होता।
भाजपा रीजनल पार्टीज को खत्म करना चाहती सेक्युलरिज्म को खत्म करना चाहती है और मुस्लिम लीडरशिप को। इसके लिए मीडिया का चुनाव संसाधनों का, ओवेशी का और सांप्रदायिक चेहरों का खुल कर इस्तेमाल कर रही हैं ओवैसी इस शतरंजी चाल का एक मोहरा भर हैं जैसे आज अन्ना हजारे की जरूरत खत्म हो गई ऐसे ही कल ओवैसी की जरूरत ख़त्म हो जाएगी।
मैं ज़िंदगी के उस दौर से गुज़र रहा हूं जहां मेरी कोई भी तहरीर मेरी आखिरी तहरीर हो सकती है। बात सिर्फ़ उम्र की नहीं सेहत भी इस लायक़ नहीं। थोड़ा बहुत लिखने में भी वक्त लगता है दिक्कत होती है लेकिन अपनी क़ौम और अपने मुल्क के लिए अपना फ़र्ज़ जानकर कुछ लाइनें लिख देता हूं।
अब इजाज़त।
ख़ुदा हाफिज आपका
अज़ीज़ बर्नी