ब्रिटिश राज में भारतीयों के शोषण और आर्थिक तबाही का कारण क्या था?
श्याम सिंह रावत
अंतरराष्ट्रीय संस्था OXFAM ने अपनी सालाना रिपोर्ट में ब्रिटिश राज के दौरान अंग्रेजों द्वारा भारत की लूट पर विस्तार से बताया है. रिपोर्ट कहती है कि ब्रिटेन ने भारत से लगभग 648 खरब डॉलर लूटे!
सन 1760 में जब रॉबर्ट क्लाइव भारत से वापस ब्रिटेन गया तो उसके पास कम से कम 3,00,000 पाउंड की संपत्ति थी, जो आज के हिसाब से 82 हजार लाख रुपये बनते हैं.
यह उस ऐतिहासिक लूट की एक छोटी सी मिसाल है, जिसे बहुत से इतिहासकार दुनिया की सबसे बड़ी लूट कहते हैं.
बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के साथ 1757 में हुई प्लासी की लड़ाई के विजेता अंग्रेज सेना के इस अधिकारी के कारनामे, दरअसल ब्रिटिश उपनिवेश के रूप में भारत को लूटने का प्रतीक मात्र थे.
OXFAM की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, 1765 से 1900 के बीच ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत से लगभग 648.2 खरब डॉलर की संपत्ति लूटी. इनमें से 338 खरब डॉलर ब्रिटेन के सबसे अमीर 10 प्रतिशत लोगों की जेब में गया.
शोषण से आर्थिक तबाही
कभी ‘सोने की चिड़िया’ कहलाने वाला भारत अपनी समृद्धि और संसाधनों के लिए विश्व प्रसिद्ध था. ब्रिटिश शासन ने इस समृद्धि को व्यवस्थित तरीके से छीन लिया.
1750 में भारत का हिस्सा वैश्विक औद्योगिक उत्पादन में 25 प्रतिशत था.
19वीं सदी के अंत तक, यह हिस्सा घटकर केवल 2 प्रतिशत रह गया.
यह गिरावट प्राकृतिक नहीं थी, बल्कि ब्रिटिश नीतियों का परिणाम थी.
ब्रिटिश संरक्षणवादी नीतियों ने भारतीय उद्योगों, विशेष रूप से कपड़ा उद्योग, को बर्बाद कर दिया.
भारत, जो दुनिया भर में अपने उत्कृष्ट मलमल और वस्त्रों के लिए प्रसिद्ध था, धीरे-धीरे इस क्षेत्र में अपनी पहचान खो बैठा.
अमेरिकी इतिहासकार माइक डेविस अपनी पुस्तक ‘लेट विक्टोरियन होलोकॉस्ट्स’ में लिखते हैं–
“अंग्रेजों ने भारतीय वस्त्र उद्योग को पूरी तरह नष्ट कर दिया. उन्होंने भारतीय वस्त्रों पर भारी कर लगाए और ब्रिटिश उत्पादों को भारतीय बाजारों में सस्ते दामों पर बेचा. इससे लाखों कुशल कारीगर और बुनकर बेरोजगार हो गए.”
भारतीय इतिहासकार रोमेश चंदर दत्त अपनी किताब ‘द इकनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इंडिया अंडर अर्ली ब्रिटिश रूल’ में लिखते हैं–
“भारतीय निर्माता यूरोपीय मशीनों और भाप से चलने वाले उद्योगों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सके. वे अपनी आमदनी, भोजन और कपड़े खो बैठे और घोर गरीबी में फंस गए.”
भारत से धन निकालने के तरीके
ब्रिटिश शासन ने भारत की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से लूटने के लिए कई तरीके अपनाए. इनमें सबसे प्रमुख था ‘होम चार्जेज’ का सिस्टम. इसके तहत भारत का राजस्व ब्रिटेन में ब्रिटिश अधिकारियों के खर्च और पेंशन के लिए भेजा जाता था. शासन करने वालों का मुख्य उद्देश्य इतना राजस्व जुटाना था कि प्रशासन का खर्च पूरा हो सके और एक बड़ा हिस्सा इंग्लैंड भेजा जा सके.”
इस नीति का सबसे क्रूर प्रभाव बंगाल में देखा गया, जहाँ ज्यादा कर लगाने की वजह से 1770 का भीषण अकाल पड़ा. इस अकाल में करीब एक करोड़ लोग मारे गए. बंगाल की आधी उपजाऊ भूमि पर खेती बंद हो गई. जनसंख्या का एक-तिहाई हिस्सा समाप्त हो गया.”
अर्थशास्त्री उत्सा पटनायक ने अनुमान लगाया है कि 1765 से 1938 के बीच ब्रिटेन ने भारत से लगभग 450 खरब डॉलर की संपत्ति लूटी. यह संपत्ति करों, जबरदस्ती निर्यात और ‘होम चार्जेज’ जैसे तरीकों से निकाली गई.
पटनायक का कहना है,
“इस लूट का दीर्घकालिक असर भारत की अर्थव्यवस्था और उद्योगों पर पड़ा. भारतीय उद्योगों को कमजोर करके ब्रिटेन ने अपने उद्योगों को बढ़ावा दिया.”
भुखमरी और मानव पीड़ा
ब्रिटिश शासन की नीतियों ने न केवल भारत की संपत्ति को लूटा बल्कि करोड़ों लोगों की जान भी ले ली. 1891 से 1920 के बीच ब्रिटिश नीतियों के कारण भारत में 5.9 करोड़ अतिरिक्त मौतें हुईं.
सबसे दर्दनाक उदाहरण 1943 का बंगाल अकाल था, जिसमें 30 लाख से अधिक लोग मारे गए.
माइक डेविस के अनुसार
“ये अकाल प्राकृतिक आपदाएं नहीं थे. ये ब्रिटिश साम्राज्य की नीतियों का परिणाम थे.”
जर्मन न्यूज़ पोर्टल DW में 23 जनवरी को प्रकाशित लेख ‘फिर हरे हुए भारत की सबसे बड़ी लूट के जख्म’ दी गई बातों की तुलना वर्तमान भारत से करें तो क्या पिछले साढ़े दस सालों में यहाँ जिस तरह की नीतियाँ लागू की गई हैं, वे आमजन के लिए ब्रिटिश राज से कम शोषणकारी और चंद पूँजीपतियों की तिजौरियाँ भरने वाली नहीं हैं?
आखीरकार क्या वज़ह रही होगी कि RSS अंग्रेजों के तमाम अत्याचार और शोषण का समर्थक तथा उससे मुक्ति के लिए संघर्षरत कांग्रेस व अन्य क्रान्तिकारियों के विरुद्ध था?
आज जिस तरह एक ओर देश की उत्पादन क्षमता घटाने व भारी टैक्स लगाने और दूसरी तरफ चीन निर्मित वस्तुओं के आयात की खुली छूट देकर देश के उद्योग-धंधे ठप्प करने के प्रयास किये जा रहे हैं, वह अंग्रेजों की नीतियों के अनुरूप ही तो है.
इस शोषण और आर्थिक तबाही का कारण शायद यह है कि “स्वघोषित ईश्वरीय अवतार” अपने परमपूज्य गुरुजी के सपनों का भारत बनाना चाहता है।