जौहर यूनिवर्सिटी की रक्षा करें और उसके वजूद को कायम रखें।अगर जरूरत पड़े तो सारे देश में इसके लिए कमर कसकर लड़ाई शुरू कर दें:डॉ अज़ीज़ क़ुरैशी,एक्स गवर्नर

मैंने जवाब दिया था कि अपनी कौम और मुसलमानों की भलाई के लिए अगर ऐसी 10 गवर्नरी कुर्बान करना पड़े तो मैं उन्हें जूते की नोक पर रखता हूँ:डॉ अज़ीज़ क़ुरैशी

मुजाहिद खाँ:मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी पर हो रही कार्यवाहियों और इसके खिलाफ रची जा रही साज़िशों को लेकर पूर्व राज्यपाल अज़ीज़ क़ुरैशी ने सोशल मीडिया पर अपना बयान जारी करते हुए इसकी हक़ीक़त को बयां किया।ज्ञात रहे डॉ अज़ीज़ क़ुरैशी 23 जून 2014 से 22 जुलाई 2014 तक उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रहे थे और अपने कार्यकाल के दौरान मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी।हालांकि जौहर यूनिवर्सिटी के प्रस्ताव को मंज़ूरी देने के बाद उनका कार्यकाल बहुत कम समय का रहा लेकिन यह काम कर उन्होंने अपना नाम इतिहास के पन्नो में दर्ज करा लिया और पद की कुर्बानी भी देनी पड़ी।
पूर्व राज्यपाल अज़ीज़ क़ुरैशी का अपने जारी बयान में कहना है कि वास्तविक रूप में श्री मोहम्मद आज़म खान ने अपने खूने जिगर से इस पौधे को सीँचा और अपनी सारी जिंदगी इसके बनाने में लगा दी।दुर्भाग्य की बात यह थी कि लगभग दस साल तक यूनिवर्सिटी की मंजूरी का प्रस्ताव उत्तर प्रदेश के राज्यपाल की मंजूरी के लिए पड़ा रहा और कांग्रेस शासन के बनाए गए दो राज्यपालों ने भी इसे मंजूरी नहीं दी,यह केवल फिरका परस्ती की बुनियाद पर था इसलिए कि इसके बनने से यूनिवर्सिटी के सारे विभागों में मुसलमानों को 50% आरक्षण मिल जाता और उनके लिए एक क्रांतिकारी कदम होता।कहा आश्चर्य की बात यह है कि इनमें से एक राज्यपाल ने श्री मुलायम सिंह यादव से यह कहा; “क्या आप चाहते हैं कि मैं यूनिवर्सिटी के बिल को मंजूरी दूँ और इसके बनने के बाद इसका दूसरा दरवाजा पाकिस्तान में खुल जाए,इससे पहले हम अलीगढ़ विश्वविद्यालय बनाकर देश के विभाजन का दर्द झेल चुके हैं और अलीगढ़ यूनिवर्सिटी ने पाकिस्तान बनवाने में सहायता की थी।”इससे ज्यादा बदकिस्मती की बात और क्या हो सकती है कि यह राज्यपाल महोदय भारत में पुलिस के विभाग में एक बहुत बड़े पद पर पदस्थ रहे और उन्होंने उस जमाने में किस तरह काम किया होगा यह उनके कथन से जाहिर है।
जब मैं उत्तराखंड का राज्यपाल था तो माननीय जनाब आज़म खान ने मुझे इन तमाम बातों से अवगत कराया था और विस्तार पूर्वक जानकारी दी थी।एक मीटिंग में जब माननीय आजम खान भावनाओं में आकर फूट-फूट कर रोने लगे थे और उन्होंने भगवान से दुआ की थी की अल्लाह चाहे तो एक दिन को ही सही अज़ीज़ कुरैशी को उत्तर प्रदेश का राज्यपाल बना दें ताकि वह यूनिवर्सिटी के इस बिल को मंजूरी दे दें।शायद उनकी दुआ कबूल हुई और मुझे थोड़े दिन के लिए उत्तर प्रदेश का राज्यपाल बना दिया गया।यह बात हम लोगों को जान लेना चाहिए कि राज्यपाल चाहे एक दिन का हो या 5 साल के लिए हो वह राज्यपाल ही होता है पर कार्यवाहक राज्यपाल कोई चीज नहीं होती।जब मैंने इस फाइल को अध्ययन करने के लिए मंगवाया तो ऐसा लगा कि राजभवन में भूचाल आ गया हो,उसकी सूचना केंद्र सरकार के ग्रह विभाग को हो गई वहां से गृह सचिव का टेलीफोन राज्यपाल के प्रिंसिपल सेक्रेटरी को आया कि वह फाइल फौरन दिल्ली भेज दी जाए।प्रिंसिपल सेक्रेट्री महिला थी उन्होंने जवाब दिया कि वह फाइल राज्यपाल के व्यक्तिगत अध्ययन में है और उनसे फाइल वापस लेना संभव नहीं है क्योंकि वर्तमान राज्यपाल अपनी क़िस्म का एक अलग पागल व्यक्ति है। उसके बाद लगातार टेलीफोन दिल्ली से आते रहे कि किसी भी तरह इस फाइल को राज्यपाल से लेकर दिल्ली सरकार के पास भेज दिया जाए।महिला प्रिंसिपल सेक्रेटरी एक बहुत ही योग्य और ईमानदार महिला थी उन्होंने सारी बात मुझे बता दी।मैंने फाइल का पूरी तरह अध्ययन किया और इस परिणाम पर पहुंचा कि केवल इसलिए यूनिवर्सिटी की मंजूरी नहीं ली जा रही *इससे मुसलमानों का भला होगा और इससे बड़ी सांप्रदायिकता सद्भावना का उदहारण एक सेकुलर प्रशासन में दूसरी नहीं हो सकता।मैंने इस संबंध में जरूरी आदेश दिए सारी मालूमात इकट्ठा की और विस्तार पूर्वक नोट बनाकर उत्तर प्रदेश के एडवोकेट जनरल को उनकी राय के लिए भेज दिया इसी दौरान मेरे पास सैकड़ों टेलीफोन आए और मुझे वार्निंग दी गई के अगर मैंने इस बिल को मंजूर किया तो मुझे अपनी गवर्नरी से हाथ धोने पड़ेंगे।इसी दौरान भारत सरकार के कुछ महत्वपूर्ण व्यक्तियों ने मुझे वार्निंग देते हुए यह कहा कि मैं अपने मौजूदा 3 साल पूरे करूं और अगर मैं जौहर यूनिवर्सिटी के बिल को मंजूरी नहीं दूं तो उसके बाद अगले 5 साल के लिए मुझे प्रधानमंत्री मोदी जी दोबारा राज्यपाल बना देंगे।मैंने जवाब दिया अपनी कौम और मुसलमानों की भलाई के लिए अगर ऐसी 10 गवर्नरी कुर्बान करना पड़े तो मैं उन्हें जूते की नोक पर रखता हूँ और कोई परवाह नहीं करता कि मुझे कल के निकालते हुए आज निकाल दें लेकिन बिल को मंजूरी हर कीमत पर दूंगा चाहे मेरी जान ही क्यों ना चली जाए।*जब मैं यह कह रहा था तो उस समय किसी प्रेस रिपोर्टर ने इस बात का वीडियो रिकॉर्ड कर लिया और उसे वायरल भी कर दिया कि मैं ठोकर दिखाकर बात कह रहा हूँ।
मुझे अच्छी तरह मालूम था कि बिल को मंजूरी देने के साथ ही मेरी गवर्नरी खत्म हो जाएगी और इस संबंध में उस समय के तत्कालीन भारत सरकार के गृह सचिव ने मुझे अच्छी तरह इस बात की वार्निंग दी थी और जवाब में मैंने उसको अपनी कड़ी भाषा में इसका उत्तर भी दे दिया था।*यह बड़ी बदनसीबी है की एक मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी का बनना बर्दाश्त नहीं हो रहा है और सांप्रदायिक व्यक्तियों के दिलों मे जिनमें सभी दलों के लोग शामिल हैं सीनों पर सांप लौट रहे हैं और इस सब की कीमत आजम खां को भारी रूप में अदा करनी पड़ रही है।मुझे अपने आप पर फक्र है कि मैंने अपनी कौम और देश के लिए यह मामूली काम किया।मेरा कोई बड़ा कारनामा नहीं है केवल मैंने अपने फर्ज को अदा किया है।*एक गलतफहमी को और दूर होना चाहिए कि मैंने यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक यूनिवर्सिटी का दर्जा नहीं दिया था बल्कि यूनिवर्सिटी का वजूद ही नहीं था और अगर मैं इस बिल को मंजूरी नहीं देता तो यूनिवर्सिटी खत्म हो जाती वजूद में ही नहीं आती इसलिए इस बिल को मंजूरी देकर ही मैंने यूनिवर्सिटी के वजूद को कायम किया और उसे कानूनी हैसियत दी जो यकीनन बहुत बड़ा काम था।आज अनेक ताकतें रामपुर की यूनिवर्सिटी को समाप्त करने के लिए लगी हुई है लेकिन यह हर सेक्युलर व्यक्ति के लिए और खासतौर से पूरी मुस्लिम कौम के लिए एक चैलेंज है कि वह अपनी जान की बाजी लगाकर और अपने खून का आखरी कतरा तक बहा कर यूनिवर्सिटी की रक्षा करें और उसके वजूद को कायम रखें और अगर जरूरत पड़े तो सारे देश में इसके लिए कमर कसकर लड़ाई शुरू कर दें।

*डॉ अज़ीज़ क़ुरैशी-पूर्व राज्यपाल*

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