मौलाना अबुल कलाम आज़ाद(अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन)-11 नवंबर 1888-22 फरवरी,1958
रामपुर:मौलाना अबुल कलाम आज़ाद एक प्रसिद्ध भारतीय मुस्लिम विद्वान थे।वे कवि, लेखक,पत्रकार और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे।भारत की आज़ादी के बाद वे एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक पद पर रहे।मौलाना आज़ाद महात्मा गांधी के सिद्धांतो का समर्थन करते थे।उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए कार्य किया,तथा वे अलग मुस्लिम राष्ट्र (पाकिस्तान) के सिद्धांत का विरोध करने वाले मुस्लिम नेताओ में से थे।इसके साथ ही खिलाफत आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।1923 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे कम उम्र के अध्यक्ष बने और 1940 और 1945 के बीच कांग्रेस के अध्यक्ष रहे।आजादी के बाद वे *भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के रामपुर जिले से 1952 में सांसद चुने गए* और वे भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने।
मौलाना आज़ाद अफग़ान उलेमाओं के ख़ानदान से ताल्लुक रखते थे जो बाबर के समय हेरात से भारत आए थे।उनकी माँ अरबी मूल की थीं और उनके पिता मोहम्मद खैरुद्दीन एक फारसी (ईरानी, नृजातीय रूप से) थे।मोहम्मद खैरुद्दीन और उनके परिवार ने भारतीय स्वतंत्रता के पहले आन्दोलन के समय 1857 में कलकत्ता छोड़ कर मक्का चले गए।वहाँ पर मोहम्मद खैरुद्दीन की मुलाकात अपनी होने वाली पत्नी से हुई और मोहम्मद खैरूद्दीन 1890 में भारत लौट आए।मौहम्मद खैरूद्दीन को कलकत्ता में एक मुस्लिम विद्वान के रूप में ख्याति मिली।जब आज़ाद मात्र 11 साल के थे तब उनकी माता का देहांत हो गया।उनकी आरंभिक शिक्षा इस्लामी तौर तरीकों से हुई।घर पर या मस्जिद में उन्हें उनके पिता तथा बाद में अन्य विद्वानों ने पढ़ाया।इस्लामी शिक्षा के अलावा उन्हें दर्शनशास्त्र,इतिहास तथा गणित की शिक्षा भी अन्य गुरुओं से मिली।मौलाना आज़ाद ने उर्दू,फारसी,हिन्दी,अरबी तथा अंग्रेजी़ भाषाओं में महारथ हासिल की।सोलह साल उन्हें वो सभी शिक्षा मिल गई थीं जो आमतौर पर 25 साल में मिला करती थी।
इसके अलावा पत्रकारिता में भी मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने अलहिलाल अख़बार निकाल कर अपने क़लम बहुत कुछ लिखा।
हम सभी को इनके जीवन से सीख लेकर,हिंदुस्तान में इनके योगदान को याद रखना चाहिए।